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१२५ करोड़ तनतंत्र = भारतीय लोकतंत्र

YOUNG INDIAN WARRIORS
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इस देश का लोकतंत्र १२५ करोड़ तनतंत्रों से मिलकर बनता है, इस देश का हर निवासी भारतीय लोकतंत्र का अंग है, सभी कि लोकतान्त्रिक जिमेदारियां है, ये अलग बात है कि, जब भी लोकतान्त्रिक जिमेदारियों कि बात आती है हमें सिर्फ राजनेताओं और राजनितिक दलों कि याद आती है! ऐसा क्यों है? क्या इस देश कि लोकतान्त्रिक व्यस्था में हम मतदाताओं कि कोई जिमेदारी नहीं है? या, क्या नेताओं और राजनितिक दलों को कोसने भर से हमारी जिमेदारियां पूर्ण हो जाती है?

यह स्थिति बेहद शर्मनाक, परन्तु सत्य है कि, जब देश के भ्रष्ट नेताओं और राजनितिक दलों को कोशने कि बारी आती है तो, इस देश का हर व्यस्क नागरिक इसे अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझाता है, लेकिन जब लोकतंत्र में अपनी जिमेदारी निभाने कि बात आती है तो, हममे से अधिकतर मतदाता अपनी जिमेदारियों को भूल जाते है! नेताओं कि जिमेदारियों पर बात करने वाले हमारे भाई-बंधू, मतदान दिवस पर या, तो घरों में न्यूज़ चैंनल पर चुनाव का हाल देखते है, या किसी चाय/पान दुकान पर लोगों को राजनीतिक समीकरण समझते नजर आते है! किसी भी लोकतंत्र कि सफलता जन भागीदारी पर निर्भर करती है, और हमें समझाना होगा कि मतदान ना कर के हम लोकतंत्र कि गरिमा को ठेष पहुंचा रहे हैं, और ऐसा कर के हम किसी नेता या, राजनितिक दल को नहीं इस देश कि लोकतान्त्रिक व्यवस्था को कमजोर कर रहे है!

साथ ही हमें समझाना होगा कि, अगर हम चुनाव प्रक्रिया में मतदान नहीं करते है तो, इसका तात्पर्य है कि हमने अपना नेता नहीं चुना है , ऐसे में चुनें हुए नेताओं को गाली देने, कोसने और उनसे कुछ उमीद रखने को कोई अधिकार नहीं बनता ! हमें कोई हक़ नहीं कि हम नेताओं को उनकी जिमेदारियों पर भाषण सुनाएँ ! नेताओं को कोसने और उनसे अपने मतों का हिसाब मांगने का अधिकार सिर्फ उन लोगों को है जो, मतदान प्रक्रिया में भाग लेते है!

किसी भी चुनाव कि सफलता ‘मतप्रतिशत’ से लगाई जाती है, यह बेहद दुर्भागयपूर्ण है कि नेताओं को कोसने और उनकी खामियां निकालने कि बात हो तो,, इस देश के १००% मतदाता नजर आते है , लेकिन जब मौका योग्य नेता के चुनाव का हो तो मात्र ५०-६०% लोग ही नजर आते है! अर्थात लगभग आधे लोग अपनी जिमेदारी नहीं निभाते है! यह वास्तव में किसी भी लोकतान्त्रिक व्यवस्था के लिए शर्मनाक स्थिति है ! इस मतप्रतिशत कि गहराई से विश्लेषण करें तो, कई तथ्य देश कि लोकतान्त्रिक व्यवस्था कि एक घिनौनी तस्वीर पेश करते हैं! यहाँ हमें समझने कि आवश्यता है कि जो लोग आज चुनाव में सक्रिय रूप से मतदान कर रहे हैं उसमे से ८०-९० % लोग किसी न किसी राजनितिक दल या, उमीदवार के कट्टर समर्थक होते है, इन्हे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनका उमीदवार कैसा है? ये अपने उमीदवार को जिताना अपना कर्तव्य समझते है …….सीधे शब्दों में कहें तो, जो मतदाता तठस्थ होता है, जो सही व्यक्ति का चुनाव कर सकता है ….दुर्भागयवश वही मतदाता ‘मतदान’ नहीं करता है ! वास्तव में यह स्थिति देश के राजनितिक दलों को काफी रास भी आ रही है, क्योकि चुनाव क्षेत्र में समर्थकों कि संख्या से ही चुनाव परिणाम तय होने लगा है!

अब यह प्रश्न हम मतदाताओं के ऊपर है कि क्या हम इसी तरह देश के राजनितिक हालातों से रुष्ट होकर देश को और बर्बाद होने के लिए छोड़ देंगे या, अपनी जिमेदारियों का निर्वाह कर देश में एक स्वस्थ राजनीतिक व्यस्था कायम करने में अपनी जिमेदारी निभाएंगे? क्या हम अपनी मजबूत लोकतंत्रिक व्यवस्था को, खोखला करने कि छूट इन नेताओं को देंगे या, अपनी लोकतान्त्रिक जिमेदारियों को निभा कर योग्य नेता का चुनाव करेंगे, जिससे देश कि लोकतान्त्रिक व्यवस्था मजबूत हो सके? इन सवालों का जवाब इस देश कि राजनीतिक दशा और दिशा बदल सकता है ……वोट किसी को करे, लेकिन वोट जरुर करें,….आपका नेता हारे या, जीते ……आपका लोकतंत्र जरुर जीतेगा !!!!!!
—के.कुमार ‘अभिषेक’

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