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“कोंग्रेस मुक्त भारत”: राजनीतिक और व्यवहारिक विवेचना

YOUNG INDIAN WARRIORS
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भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री उम्मीदवार श्री नरेंद्र मोदी जी ने इस बार के चुनाव प्रचार में अपनी बहुचर्चित उग्र राजनैतिक कार्यशैली के तहत कई नारे दिए है,…वैसे भी उनके चुनावी भाषणों में विरोधयों के खिलाफ जनता को उत्तेजित करने वाले नारों, फब्तियों, जुमलों, के अलावा विशेष कुछ नहीं होता..! नरेंद्र मोदी जी, लिखित जुमलों और नारों को पढ़ कर आसमान में चलें जाते है, फिर भारतीय जनता पार्टी के दूसरे नेता प्रेस कॉन्फ्रेंस कर उन जुमलों का मतलब समझाते हैं ! सही को गलत और गलत को सही साबित करने कि कोशिस होती है! नारों कि हम बात करें तो इस चुनाव में पहला ‘नारा’ जो मोदी जी का काफी प्रचलित हुआ, वह था…”कोंग्रेस मुक्त भारत” !!!!!

वास्तव में यह नारा इस चुनाव में भाजपा (मोदी जी ) कि रणनीति का प्रतिक बन के उभरा है~! लेकिन इस रणनीतिक ‘नारे’ की लोकतान्त्रिक विवेचना अभी तक अधूरी है….इस नारे का आशय क्या है? इससे क्या सन्देश देने कि कोशिस हो रही है? सबसे बड़ा सवाल कि, लोकतान्त्रिक नजरिये से क्या यह ‘नारा’ उचित है ? क्या ऐसे नारों के लिए हमारी स्वस्थ राजनैतिक परम्परा में जगह है?
सर्वप्रथम हम बात करें इस ‘नारे’ के उदेश्य कि तो., जब माननीय नरेंद्र मोदी जी ‘कोंग्रेस मुक्त भारत’ कि बात करते है तो प्रश्न उठता है, क्या राहुल गांधी, सोनिया गांधी और उनके जैसे कुछ बड़े नेता ही कोंग्रेस है? नहीं, बिलकुल नहीं…..इस देश कि करोडो-करोडो जनता भी कोंग्रेस है…..वे मतदाता भी कोंग्रेस है जो चुनाव में कोंग्रेसी नेताओं को वोट देते हैं….वे लोग भी कोंग्रेसी है जो कोंग्रेस कि नीतियों के समर्थक है…….क्या उन करोड़ों लोगों से इस देश को मुक्त कराने कि बात कर रहे हैं मोदी जी? क्या मोदी जी कोंग्रेस नेताओं और उनके करोड़ों समर्थकों को इस देश से भागने कि रणनीति के साथ अगली सरकार बनाएंगे ?
ऐसी दमनकारी नीतियों के साथ इस देश में सरकार नहीं चलाई जा सकती है,…..जिन्हे हिटलर कि कार्यशैली पसंद हो,, उन्हें भी समझना होगा कि समय बदल गया है……
किसी भी लोकतान्त्रिक व्यवस्था में ‘पक्ष (सरकार) के बराबर महत्व ‘विपक्ष’ का है ….विपक्ष के बिना लोकतंत्र कि कल्पना भी नहीं कि जा सकती है, ‘विपक्ष’ ही वह संवैधानिक संस्था है लोकतंत्र में जो सरकार को जनता के प्रति जवाबदेह बनाये रखता है…सरकार के ऊपर संसद और संसद के बहार अनुशासनिक दबाव बनता है ! मेरा व्यक्तिगत मानना है कि किसी भी सरकार कि नाकामी, ..उस विपक्ष कि भी नाकामी है, जो सरकार को गलत करने से रोक नहीं सका ! सवाल तो यह भी उठते है कि जो राजनितिक दल या. संगठन विपक्ष कि भूमिका में सफल नहीं हो सका….उसे पक्ष (सरकार) कि जिमेदारी क्यों दी जाये ??? ….. मोदी जी जिस तरह से अपने विपक्षी पार्टियों को (समर्थकों सहित) उखाड़ फेकने कि बात कर रहे है, यह इस देश के हर उस नागरिक के लिए सोचने का विषय है जो इस लोकतंत्र का हिस्सा है !

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