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भारतीय संस्कृति सिर्फ धर्म का प्रतिरूप नहीं है, सम्पूर्ण विश्व में कोई ऐसी मानवीय संकृति नहीं है, जो शत-प्रतिशत सही और शुद्ध हो! हमारी भारतीय संस्कृति में कई खामियां अवश्य है, लेकिन यह पाश्चात्य सस्कृति से बेहतर और मानवीय मूल्यों से परिपूर्ण है…….हमें अगर अपनी संस्कृति को वास्तव में बचाना चाहते हैं तो, हमें इसकी खामियों को लेकर मंथन करना ही होगा ! कहीं आने वाले भविष्य में अंधविश्वास,जातिवाद ,दहेज़ प्रथा, बाल विवाह, धार्मिक भार्स्ताचार जैसी कुछ गिनती कि खामियों कि वजह से हमारी सस्कृति हमारे ही समाज में हासिये पर न चली जाये , …हमारे ही बच्चे इन खामियों कि वजह से भारतीय संकृति का मजाक न उड़ायें ….इसके लिए हमें इन खामियों और नकारात्मक वैचारिक मान्यताओं को भारतीय संस्कृति से अलग करना ही होगा…!
समय के साथ किसी भी व्यवस्था में परिवर्तन ना हो, तो वह व्यवस्था समाज के लिए प्रगतिशील नहीं रहती…..और आने वाली पीढ़ी पर बोझ बन जाती है…१९५० में संविधान बनने के बाद हमारे देश का ‘महान संविधान’ भी कई मुद्दों पर परिवर्तित हो चूका है! अगर व्यस्था प्रगतिशील ना हो, तो इन्शान इस धरती पर किसी वृक्ष कि भांति स्थिर हो जायेगा !मुझे उमीद है कि हम सब मिलकर अपनी सस्कृति कि खामियों को निकाल कर एक विशुद्ध भारतीय संस्कृति, अपनी भावी पीढ़ी को देंगे …जिसमे वास्तविकता, व्यवहारिकता, सामाजिकता, नैतिकता के साथ मानवीय मूल्यों का बेहतर समायोजन होगा! —-k.kumar ‘abhishek’ /08-04-2014
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