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आज राजनीति शब्द हिन्दी साहित्य के सबसे कड़वे शब्दों मे से एक है! इस शब्द का संस्मरण होते ही, मन-मस्तिष्क मे एक ऐसा मानवीय चरित्र घूम जाता है जिसे इंसान मानने से पूर्व इंसानियत की परिभाषा मे भी सामंजस्या बैठने की ज़रूरत पड़ जाएगी!
वास्तविक रूप से देखा जाय तो, ‘राजनीति’ शब्द के उच्चारण मात्र से ही “राजतंत्र” की बू आती है! वास्तव मे वर्षों पहले हमारे देश से “राजतंत्र” का अंत हो गया, लेकिन इसकी नीति (राजनीति) आज भी हमारे बीच मौजूद है, और मौजूद ही नही कहीं ज़्यादा मजबूत स्थिति मे है! राजतंत्र मे राजनीति का शब्द का औचित्या राजा और उनके मंत्रियों तक सीमित था, लेकिन लोकतंत्र मे हर आम व, खास के लिए इस शब्द का औचित्य महत्वपूर्ण हो गया, सबके लिए ‘राजनीति’ के दरवाजे खुल गये !
मेरा व्यक्तिगत मत है की ‘राजतंत्र’ के साथ ‘राजनीति’ शब्द को भी समाप्त कर देना चाहिए था, इस शब्द को भी इतिहास के नाम अधिकृत कर देना चाहिए था! ज़्यादा बेहतर होता के हमारे संविधान निर्माता ‘राजनीति’ की जगह ‘लोक-नीति’ या, ‘जन-नीति’ जैसे शब्दों के इस्तेमाल का प्रचलन शुरू करते! ये शब्द वर्तमान शासन प्रणाली के साथ बेहतर सामंजस्या के साथ परिभासित होते हैं!
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