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मेरा व्यक्तिगत मानना है की, ‘व्यक्तिवादी लोकतंत्र’ राजनीतिक दलों मे नही होना चाहिए, लेकिन आम मतदाता के लिए राजनीति को समझने का बेहतर माध्यम है “व्यक्तिवादी लोकतत्र” .! आज जिस तरह की महत्वहिन, और गैर-ज़िम्मेदाराना राजनीति हो रही है, ऐसे मे हमारी आम जनता के लिए लोकतंत्र को समझना काफ़ी जटिल हो गया है। राजनीति उनके लिए एक अबूझ पहेली बनती जा रही है, यही कारण है की आज लोकतंत्र मे जनता की भागिदारी कम हो रही है। ऐसे मे बेहद आवश्यक है की हमारे मतदाता सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने क्षेत्र के उम्मीदवारो को ध्यान मे रखकर वोट करे, क्योकि यही भारतीय राजनीति के हित मे उचित होगा। हम मदाताओ को दलगत/केंद्रिय/ जातिगत/धार्मिक/ समीकरण को मतदान प्रकिया से बाहर करना होगा।
उदाहरण के लिए– अगर किसी दल के घोषित प्रधानमंत्री उम्मीदवार हमे प्रधानमंत्री के रूप मे पसंद है, लेकिन उनके दल का हमारा स्थानीय उम्मीदवार सही ना हो, तो हमे उसे वोट नही देना चाहिए। इसी तरह अगर कोई राजनीतिक दल हमे पसंद हो, लेकिन उनका स्थानीय उम्मीदवार योग्य ना हो तो हमे उसे वोट नही करना चाहिए। देश के सभी मतदाताओ को राजनीति की मुश्किलों मे पड़े बिना सिर्फ़ और सिर्फ़ अपना नेता चुनना चाहिए, क्योकि प्रधानमंत्री /मंत्री चुनने का अधिकार हमारे पास नही है। हम सभी अच्छे व्यक्तियो को चुन कर संसद मे भेजेंगे, ऐसे में जिस दल के ज़्यादा से ज़्यादा अच्छे उम्मीदवार होंगे उनकी ही सरकार बनेगी और उनका ही नेता प्रधानमंत्री बनेगा, अर्थात हमें अपने क्षेत्र के लिए ‘व्यक्तिवादी नजरिया ‘ का प्रयोग राजनितिक सरलता के लिए करना चाहिए, और यही देश कि लोकतंत्रिक व्यवस्था के हित में होगा। ——————— के. कुमार (अभिषेक)
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