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वास्तव में यह बेहद सुखद है की, नरेंद्र मोदी जो अपने आप में भारतीय राजनीति का एक धुर्व बन गए है, जिनके नाम से ही पक्ष और विपक्ष की राजनीति हो रही है, आज हर भारतीय मतदाता या तो “मोदी समर्थक” है, या “मोदी विरोधी”…लेकिन उन्होंने कभी भी जातिगत पहचान को राजनीतिक रूप देने की कोशिस नहीं की ! ये सही है की उनके ऊपर धर्म के नाम पर राजनीति करने के आरोप लगे है, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और विश्व हिन्दू परिषद की सोहबत में अपनी राजनीति को सम्पदायिक रंग देने के आरोप लगे है, और जिस तरह की धार्मिक कट्टरता इन संगठनों की रही है, आरोपों की गंभीरता को नज़रंअदाज नहीं किया जा सकता है, बावजूद इसके धार्मिक ढांचे में रहते हुए जातिगत परिचयों का इस्तेमाल अपने राजनीतिक उदेश्यों के लिए ना करना, उन्हें अन्य राजनेताओं से अलग खड़ा करता है! एक भारतीय मतदाता के रूप में अगर हम नरेंद्र मोदी के नकारात्मक पहलुओं की आलोचना कर सकते है तो, उनके सकारात्मक पहलुओं के लिए प्रसंशा भी बनता है!
मेरा हमेशा से यह मानना रहा है की, जातिगत राजनीति भारतीय लोकतंत्र के नाम पर सबसे दुर्भाग्यशाली कलंक है! आज हमारे देश के राजनेताओं का जातिवादी रूप, व्यवहारिक शर्महीनता की परकाष्ठा को दर्शाता है! शर्म आनी चाहिए उन नेताओं को जो अपने स्वार्थ में वशीभूत होकर,सत्ता की लालच में लगातार भारतीय समाज के सौहार्द को दूषित करने का प्रयास कर रहे है, जो लगातार अपनी गन्दी राजनीतिक कार्यशैली से अखंडित भारतीय समाज को जड़ों को खोखला करके अपनी राजनीतिक रोटियां सेकना चाहते है ! ऐसे हालत में नरेंद्र मोदी एक ऐसा सख्स जो बिना जातिगत परिचयों के राजनीति में यह मुकाम हासिल करने की तरफ अग्रसर है, जो बहुतों के लिए सिर्फ एक कल्पना है!
अहम बात तो यह की देश को जातिगत पहचानों के आधार पर बाँट कर सत्ता सुख भोगने की जुगत में लगे कई राजनेताओं को श्री मोदी कि जातिहीन राजनीति बेहद नागवार गुजर रही है! यही कारण है की पिछले दिनों नरेंद्र मोदी की जाति को मुद्दा बनाया जाने लगा, ..:नरेंद्र मोदी को अपनी जाति नहीं बताने को लेकर जमकर कोसा गया , और उनसे उनकी जाति जाहिर करने की मांग की गई ! वास्तव में यह इस देश का दुर्भाग्य है की हमारी राजनीतिक प्रतिबद्धता ..जातिगत परिचयों के आधार पर तय होती है, ऐसे में एक व्यक्ति, जो अपनी कार्यशैली और अपने व्यवहारिक व्यक्तित्व को पहचान बना अपनी राजनीति को संचालित करने का प्रयास कर रहा है, देश के शर्मविहीन और कर्महीन जातिवादी राजनेता…..उसकी पहचान को लेकर सवाल पूछ रहे है! उसे अपने रंग में रंगने कि कोशिस हो रही है! ऐसे राजनेताओं को अगर अपनी राजनीतिक विरासत को भविष्य में भी सुरक्षित रखना है, तो समाज के बदलते माहौल को समझाना होगा, …देश की राजनीति को अपनी महत्वकांक्षाओं की आड़ में जातिगत और सांप्रदायिक रंग देने से बचना होगा, ….! इस देश के निवासी होने के नाते भारतीयता हमारी पहचान है, और इसी पहचान को अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धता का आधार बनाना होगा, अन्यथा वह दिन ज्यादा दूर नहीं …..जब ऐसी पार्टियां और ऐसे राजनेताओं राजनीतिक और सामाजिक गलियारे में अपना अस्तित्वा ढूढ़ने को मजबूर हो जायेंगे! इसकी एक बड़ी झलक बिहार की स्थानीय राजनीति में देखने को मिल भी रही है, जब लोग जातिगत परिचयों को दरकिनार कर राज्य के विकास के लिए मतदान कर रहे है, और जाति के नाम पर भावनात्मक राजनीति करने वालों को जमीं पर ला पटका है! समझने की बात तो यह है कि, यह वही बिहार है जो आज़ादी के बाद से देश के राजनेताओं के लिए जातिगत राजनीति का प्रयोगशाला रहा है!
अभी भी समय है, जाति धर्म के नाम पर राजनीति को छोड़ कर भारतीयता की राजनीति हो, सामाजिक, सांस्कृतिक विकाश की राजनीति हो! समावेशी विकास की बात हो….तभी जा कर लोग अपनी राजनीतिक विचारधारा को सामाज कि मुख्य धारा से जोड़ पाएंगे और लोगों की आकांक्षाओं के अनुरूप स्वयं कि राजनीति भी कर पाएंगे ! —के.कुमार (०९/०५/२०१४)
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