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लगभग एक सप्ताह से चल रहे खींचतान और आशंकाओं के बीच आख़िरकार यह तय हो गया कि, “पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ, भारत के नव-निर्वाचित प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के ‘शपथ ग्रहण समारोह’ में आएंगे” ! इस बीच हमेशा कि तरह चर्चाओं का बाजार बेहद गर्म है कि ” क्या आने वाले भविष्य में इन दोनों देशों में दोस्ती हो सकती है? क्या भारत और पाकिस्तान के रिश्ते सामान्य हो सकते हैं? क्या दोनों देशों के राजनेता विकास कि वैश्विक पहल के लिए एक नई शुरुआत करेंगे?
वास्तव में वर्ष १९४७ से लेकर आज तक इन दोनों देशों के रिश्ते इस हद तक असामान्य रहे हैं कि जब भी दोनों देशों के नेता आमने-सामने होते हैं, उमीद कि नई किरण प्रज्जवलित हो उठती है! यही कारण हैं कि पाक प्रधानमंत्री का भारत आना मिडिया और प्रबुद्ध जनों में कौतुहल का विषय बना हुआ है ! इस बीच भारत में परिस्थितियां कुछ बदली हैं, लोकतंत्र ने अपना रंग दिखाया है, नयी सरकार बनने जा रही है,..जिसके मुखिया श्री नरेंद्र मोदी उस विचारधारा के ध्वजवाहक हैं जिससे पाकिस्तान सर्वथा असहज महसूस करता है! ऐसे में यह बात कई लोगों के गले नहीं उतर रही है कि, “श्री नरेंद्र मोदी के ‘शपथ ग्रहण’ में नवाज शरीफ कैसे ” ! वास्तव में भारतीय मिडिया भी इस ‘दौरे’ को को अलग-अलग रूप में परिभाषित कर रहा हैं,, तो बिखर चुके विपक्ष के कुछ लोग भी इसे राजनीतिक मुद्दा बनाने का असफल प्रयास कर रहे हैं! वहीँ कुछ लोग इसे नरेंद्र मोदी के वैचारिक और रणनीतिक परिवर्तन के तौर पर भी पेश कर रहे हैं, ऐसे लोगों का मानना है कि आक्रामक राजनीतिक व्यक्तित्व वाले श्री नरेंद्र मोदी के पाकिस्तान विरोधी कड़े तेवर प्रधानमंत्री बनने के बाद नरम पड़ गए हैं!
विभिन्न शंकाओं-आशंकाओं के बीच मेरे लिए यह मानना मुश्किल है कि श्री नरेंद्र मोदी के पाकिस्तान विरोधी कड़े तेवर नरम पड़ गए हैं,..और ना ही इसके लिए कोई कारण नजर आता हैं ! इस पुरे घटनाक्रम कि रणनीतिक विवेचना हम करें तो, यह ज्ञात होता है कि कई देशों के राष्ट्राध्यक्षों के साथ पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को बुलावा, नरेंद्र मोदी कि एक कूटनीतिक चाल है! श्री नरेंद्र मोदी दोनों देशों के आपसी सबंधों को लेकर इस कूटनीतिक प्रयाश से, विश्व समुदाय को यह सन्देश देना चाहते हैं कि “भारत शांति बहाली के लिए पडोसी देश से ज्यादा गंभीर है”… ! वे दिखाना चाहते है कि ‘पहली कोशिश हमने कि है” ! यह प्रयास श्री नरेंद्र मोदी कि पहचान के मुताबिक आक्रामक ही है, और इस आक्रामक पहल के मायने भविष्य में तब और महत्वपूर्ण हो जायेंगे, जब पाकिस्तान सीमा पार से आतंकवाद को नहीं रोक पायेगा, …सीमाओं पर हालत नहीं बदलेंगे,…सीजफायर का उलंघन पाकिस्तानी सेना बंद नहीं करेगी! यहाँ हमें समझने कि आवश्यकता है कि, अगर परिस्थितियां नहीं बदलती हैं , …और भारत को मजबूरन ‘सैन्य करवाई’ करनी पड़े….तब भारत के पास विश्व समुदाय के सामने ऐसे प्रयासों को सामने रखकर अपनी मजबूरियों को समझाने का मौका होगा! हम तब कह सकेंगे कि ‘हमने तो सबंधों को सुधरने के लिए मजबूत पहल कि थी, पडोसी देश कि नियत ही ख़राब थी…उसने सम्बन्ध सुधारने के लिए सामानांतर पहल नहीं कि” !
श्री नरेंद्र मोदी ने भारत के तरफ से एक मजबूत कूटनीतिक पहल कर दी है,,..देखना दिलचस्प होगा कि क्या पाकिस्तान इस कूटनीति को समझ पाता है? क्या सीमा पार से भी इस पहल के सामानांतर प्रयास होंगे? और यदि होंगे तो कितने गंभीर होंगे? —-के.कुमार “अभिषेक” /२५-०५-२०१४
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