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इस देश की राजनीति लगातार शर्महीनता की पराकाष्ठा को छू रही हैं! जिनकी नियत ही बुरी हो, उनकी नीति अच्छी होगी…एक ख्याली पुलाव बन के रह गया हैं! उत्तर प्रदेश के बदउँ में जिस तरह दो सगी बहनों के साथ शारीरिक दुराचार किया गया और पेड़ से टांगकर मौत के घाट उतार दिया गया…एक बार पुनः मानवता चीत्कार उठी है! इन्शानियत की हत्या का एक और प्रयास इस समाज के गिरते नैतिक मूल्यों का उदाहरण हैं! यह घटना सम्पूर्ण मानवता के लिए शर्मनाक है, इस देश के हर निवासी के लिए शर्मनाक हैं लेकिन जिस तरह से इस अमानवीय घटना का राजनीतिकरण हमारे देश के राजनेताओं ने किया है…लगता है की शर्म ने भी आना छोड़ दिया है! सही भी है, क्योकि शर्म भी नैतिकता की संगिनी है, ! जिस व्यक्तित्व में नैतिकता ही ना हो, शर्म भला कैसे आएगी?
एक दलित परिवार की दो सगी नाबालिग बहनों की ‘चिता की लौ’ पर अपनी राजनीतिक रोटिया सेकने की जैसी जल्दबाजी दिखी, एक पल को लगा…सच में अच्छे दिन आ गए! लेकिन हमेशा की तरह हम बहुत जल्द स्वप्न की दुनिया से वास्तविकता के धरातल पर विचरण करने लगे!
इस आपाधापी में सबसे पहले बाजी मारी एक ऐसे युवा नेता ने ….जो परिक्षकों से अच्छी सेटिंग के बावजूद कभी भी राजनीति की कक्षा में ‘पासिंग मार्क्स’ भी नहीं ला सके ! खुद को साबित करने की चुनौती में वे इस तरह व्याकुल हो गए हैं…की लुटती अश्मत पर ही सियासत कर बैठे! अपने आपको दलितों का मशीहा साबित करके सत्ता का सुख भोग चुके ऐसे लोग भी पहुंच गए, जिन्हे स्त्री हो के भी स्त्रीत्वं के सम्मान का अहसास नहीं था, ! प्रदेश में अपनी खिसकी जमीं और पहचान पुनः हासिल करने की छटपटाहट ने पीड़ित परिवार की पीड़ा को नासूर बना दिया ! परिवार ने अभी साँस भी नहीं ली…..की एक और महिला, जो कल तक देश के सर्वाधिक प्रतिष्ठित पद पर विराजमान थी, जो अपने आप में भारतीय महिला की उभरती ताकत का प्रतिक थी….परिवार के घावों को कुरेदने पहुंच गई !…..इस चुनाव में उन्हें एक दल-बदलू नेता ने हरा दिया……मिडिया में अपनी एक झलक दिखाने के चक्कर में उन्होंने अपनी पुरानी प्रतिष्ठा का भी ख्याल नहीं रखा! लूटी अस्मत के सहारे अपनी सियासत चमकाने की दौड़ में ….एक नेता जी तो…बकायदा अपने पुत्र के साथ पहुंच गए….उन्हें लगा, पुत्र को राजनीति के गुर सीखने का इससे बेहतर अवसर हो ही नहीं सकता है!
वास्तव में उन दो बहनों के साथ जो हुआ, उस अमानवीय घटना के लिए उन्हें अधिकतम सजा दी जानी चाहिए, ….उन दुराचारियों को ऐसी मौत दी जानी चाहिए…..जिसकी चीत्कार हर भारतीय की कान में गूंज उठे,.लेकिन सवाल उन दुराचारियों का भी हैं, जो लगातार अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने के प्रयाश में पीड़ितों की ‘चीता को बुझने नहीं दे रहे हैं, जो पीड़ित परिवार के घाव में हर दिन नयी पीड़ा पैदा कर रहे हैं, ! जो महिलाओं के साथ हो रही घटनाओं का धड़ल्ले से राजनीतिकरण कर रहे हैं,! अजीब बात तो यह की बदाऊं की घटना में न्याय दिलाने की जिमेदारी उसी कानून की हैं, जिसने इस घटना को अंजाम दिया हैं, और इस मामले में किसी नेता ने जबान नहीं खोला ! वास्तव में शर्म हमें भी आनी चाहिए की हम ऐसे स्वार्थी, लोभी, असंवेदनशील, और राष्ट्र को अपनी राजनीतिक जागीर समझने वाले राजनेताओं को सत्ता में पहुँचते हैं और फिर अच्छे दिन के सपने देखते है!
—-k.kumar ‘abhishek’ (05/06/2014)
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