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बिहार : जातिगत राजनीति की प्रयोगशाला
लगभग २ माह की आपाधापी और राजनीतिक नूरा-कुश्ती के पश्चात १६ वि लोकसभा का गठन हो चूका है! नयी सरकार ने अपने काम-काज भी प्रारम्भ कर दिए हैं! इस तरह गुजरते समय के साथ हमारी नज़रों ने राजनीति की एक और परिक्रमा पूरी कर ली है, इस परिक्रमा में कुछ सवालों के जवाब मिले तो, कई नए सवाल भी पैदा हुए है! मुख्य रूप से बिहार की राजनीति में जिस तरह का परिवर्तन देखने को मिला है, वह कई अनचाहे सवालों को जन्म दे रहा है,! देखना दिलचस्प होगा की, विकास और परिवर्तन के नाम पर वोट देकर नयी शुरुआत करने वाली बिहार की जनता के हिस्से में क्या आता हैं? जातिवाद की राजनीति से बार-बार ठगी गई जनता, क्या अपने मत की सही किमत पायेगी? क्या केंद्र की उपेक्षा से निजात इस पिछड़े राज्य को मिल पायेगा? क्या नयी सरकार के कार्यकाल में बिहार विकास की मुख्यधारा में प्रवेश कर पायेगा? ये प्रश्न निश्चय ही वर्तमान बिहार की राजनीति से जुड़े हो, लेकिन भारतीय राजनीति में उनके महत्व को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है!
आज आज़ादी के लगभग ६७ वर्ष बाद भी यह प्रमाणित तथ्य है कि बिहार की जनता हमेशा से केंद्र की अपेक्षा का शिकार रही है,! देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद और लोकनायक जयप्रकाश नारायण की जन्मभूमि, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की कर्मभूमि, और शांति एवम अहिंषा के दूत महात्मा बुद्ध की तपोभूमि, आज़ादी पूर्व अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों का शिकार हुई तो, आज़ादी के बाद अपने ही राजनेताओं की कर्महीनता का शिकार होती रही है ! लेकिन जब भी राष्ट्रीय राजनीतिक परिपेक्ष्य में बिहार की भूमिका की बात होती है, यह बेहद कड़वा परन्तु वास्तविक सत्य है की “बिहारभूमि सर्वथा से जातिगत राजनीति कि प्रयोगशाला रही है”! हमारे राजनेताओं ने अंग्रेजों की नीति “बांटों और राज करों” का भारतीयकरण बिहार की भूमि से ही शुरू किया ! यह बिहार की जनता का दुर्भाग्य है की इस राज्य से निकालकर सत्ता के शिखर पर विराजमान होने के बावजूद किसी ने भी राज्य की विकास की बात नहीं की! पूर्व से ही सामाजिक, आर्थिक ,शैक्षणिक रूप से पिछड़ी जनता को, जाति-धर्म, और अगड़ा- पिछड़ा की गन्दी राजनीतिक चालबाजी में फंसाकर मानसिक रूप से राजनीतिक गुलाम बनाने का प्रयास किया गया! समाज को जातिगत आधार पर तोड़ने के लिए रूढ़िवादी विचारों,धार्मिक परम्पराओं के साथ-साथ इतिहास का भी जमकर सहारा लिया गया,और कई-कई बार राजनीतिक स्वार्थ में तथ्यों को तोड़-मरोड़कर भी समाज को खंडित करने का काम किया गया! लोगों को रूढ़िवादी परम्पराओं के नाम पर एक दूसरे का विरोधी बनाया गया, और अपने आपको किसी जाति/वर्ग का स्वघोषित नेता सिद्ध करने के लिए जाति-धर्म के आधार पर सामाजिक गुटबंदी की गई! अहम बात तो यह की कुछ राजनेताओं ने अपने आपको किसी समूह का हितैषी सिद्ध करने के लिए, अनावश्यक रूप से अन्य जातियों का राजनीतिक एवं व्यवहारिक अपमान भी किया ! सत्ता के लालच में और अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को अंजाम देने के प्रयाश में, बिहार की जनता को बार-बार ठगा गया ! सर्वाधिक ध्यान देने और समझने की बात तो यह है की, ठगी का शिकार वे मतदाता भी हुए जिनका कोई सामूहिक रूप से राजनीतिक नेतृत्व नहीं बन पाया और वे मतदाता भी हुए जिनको नेता तो मिला लेकिन नेतृत्व नहीं! चुनाव पूर्व जनता से बड़े बड़े वादे हुए,विकास की बातें भी हुई, लेकिन समाज में ऐसी अराजकता पैदा की गई, जिससे जनता को सिर्फ अपनी जाति/वर्ग कि राजनीति करने वाले दल /व्यक्ति की सरकार में ही ख़ुशी मिल जाये! जातिवाद का जहर समाज में इस तरह घोला गया कि लोग, अपनी जाति/वर्ग से सम्बन्ध रखने वाले नेता को उच्च पद पर बैठ जाने को ही बड़ी उपलब्धि और जातिगत विकास का पैमाना समझने लगे! लोगों को बिजली,पानी, सड़क, शिक्षा, रोजगार, जैसी जन-मानस कि बुनिवादी समस्याओं कि चिंता नहीं थी, …उन्हें अपने जाति के नेता को उच्च पद पर बैठाने कि चिंता ही ज्यादा होती थी! लोग इस हद तक नकारात्मकता विचारधारा में बहक गए थे, कि अपनी गन्दी राजनीतिक चालबाजी से सत्ता में पहुचने वाले नेताओं का विकास ही अपना और अपनी जाति का विकास लगता था! जबकि व्यवहारिक तौर पर ऐसा संभव नहीं हो सकता है !
स्पष्ट है कि बिहार कि जनता को अपनी अवसरवादी जातिगत राजनीति कि बदौलत प्रदेश के नेताओं ने अपना राजनीतिक गुलाम बंनाने का कार्य किया था! संभव हैं कि ‘राजनीतिक गुलाम’ एक अलोकतांत्रिक शब्द माना जाये, लेकिन बिहारियों कि राजनीतिक विचारधारा को यही शब्द ज्यादा उचित लगता है! अब ऐसे में जब लोगों कि सोच बदली है, बिहार के मतदाता व्यवहारिक तौर पर ज्यादा चिंतनशील हुए है! उनकी राजनीतिक विचारधारा जाति/धर्म कि सीमाओं से आगे निकल कर विकास और परिवर्तनवादी हो रही है, हम उमीद करते हैं कि केंद्र में आई नयी सरकार और मुख्यतः सरकार के मुखिया श्री नरेंद्र मोदी ……बिहार कि जनता कि इस नयी सोच का स्वागत करेंगे, राज्य के सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, एवं आद्योगिक विकास के लिए बेहतर नीति और नियत से आगे आएंगे …….जिससे जनता को नयी सोच के साथ किये गए मतदान कि सहीं किमत मिले….और जनता पुरानी जातिवादी राजनीतिक विचारधारा कि तरफ लौटने से बच सके !
—– K.Kumar ‘abhishek’ (06/05/2014)
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