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पिछले कुछ दिनों से लगातार दिल्ली विश्वविद्यालय के चार वर्षीय डिग्री पाठ्यक्रम को लेकर विवाद की खबरे आ रही हैं! इस पुरे विवाद की वजह से देश के कोने-कोने से दिल्ली विश्वविद्यालय में दाखिले के लिए आये लाखों छात्रों का भविष्य आधार में लटक गया है ! इस पाठ्यक्रम की मान्यता को लेकर “विश्वविद्यालय अनुदान आयोग” और ‘यूनिवर्सिटी प्रशासन’ आमने-सामने आ चुके है..! बात बढ़ते-बढ़ते प्रतिष्ठा का विषय बन चुकी है, यही कारण है की सही हो गलत, कोई भी पक्ष पीछे हटने को तैयार नहीं दिख रहा है….इस पुरे ड्रामेबाजी में लाखों बच्चों के भविष्य की चिंता किसी भी पक्ष में नहीं दिख रही है,!
दरअसल आज भारतीय शिक्षा जगत के अंदरुनी हालत लगातार बद से बदतर होते चले जा रहे हैं! हालत और परिस्थितियों के आधार पर यह कहना गलत नहीं होगा की जिस प्रकार की धांधली, फर्जीवाड़ा, और भ्रष्टाचार इन शिक्षण संस्थानों में हो रहा हैं, ऐसी स्थिति देश की किसी व्यवस्था में नहीं है ! आज देश में उच्चा शिक्षा के नाम पर जम कर भ्रष्टाचार हो रहा है, देश में ऐसे हज़ारों विश्वविद्यालय हैं, जहाँ प्रमाणपत्रों की बिक्री हो रही है! इनमे से ज्यादातर निजी विश्वविद्यालय है, जिनकी बागडोर बड़े व्यवसायियों, उद्योगपतियों, और शिक्षा माफिआओं के हाथ में हैं, ….समझाना मुश्किल नहीं की ये वो लोग है…जिन्हे छात्रों के भविष्य की फिक्र नहीं, अपने व्यवसाय की फिक्र है…! ऐसे संस्थानों में ऊपरी चमक-दमक काफी होती है! अच्छी बिल्डिंग, अच्छे और आधुनिक व्यवस्था से पूर्ण कक्षाएं, लैब इत्यादि! वास्तव में छात्रों को आकृषित करने के लिए हर वो व्यवस्था बनाई जाती है, जो एक व्यवसाय में संभव हो, लेकिन हकीकत यही है की ऐसे संस्थानों में शिक्षा नहीं, शिक्षा का व्यवसाय होता है ! अजीब बात तो यह की पैसों के लिए हो रहे इस खेल के प्रभाव में देश के कई केंद्र एवं राज्य संचालित विश्वविद्यालय भी आ रहे हैं…अर्थात अब सरकारी विद्यालयों में भी प्रमाणपत्रों की खरीद-फरोख्त किये जा रहे हैं! वास्तव में नाजायज पैसों के इस व्यवसाय में विश्वविद्यालयों में एक पूरा नेटवर्क कार्य करता है!
बात यही ख़त्म हो जाती तो भी अच्छा होता लेकिन देश में उच्च शिक्षा के प्रचार-प्रसार,एवं नियंत्रण के लिए बने कई समितियां स्वयं गले तक भ्रष्टाचार की दल-दल में फंसी हुई है! आज देश में भर में ऐसे सैकड़ों उच्च शिक्षण संस्थान है, जो विश्वविद्यालय के लिए तय मानकों और मापदंडों के अनुरूप नहीं है, फिर भी उनका संचालित होना …और शिक्षा के नाम पर व्यावसायिक गतिविधियों में शामिल होना “विश्वविद्यालय अनुदान आयोग” की कार्यशैली पर सवाल खड़ा करता हैं! समझना मुश्किल नहीं है की ऐसे संस्थानों को खुल्ली छूट देने के पीछे ‘विश्वविद्यालय अनुदान आयोग’ ने कैसी सौदेबाजी की होगी! अब तो दूरस्थ शिक्षा भी ‘यु जी.सी’ के अधीन है, जो अपने आप में शिक्षा का मजाक है! लगभग यही स्थिति ‘तकनिकी’ शिक्षा की भी है! आज धड़ल्ले से देश भर में तकनिकी संस्थान खुल रहे हैं, जो सिर्फ और सिर्फ शिक्षा माफिआओं के लिए धन-उगाही केंद्र बने हुए हैं….! भारत में ऐसे हज़ारों तकनिकी संस्थान संचालित है, जो तकनिकी पाठ्यक्रमों के लिए आवश्यक मापदंडों को पूरा नहीं करते हैं, ! परदे के पीछे लाखों के खेल से इन संस्थानों को ‘अखिल भारतीय तकनिकी शिक्षा परिषद’ द्वारा अनुमोदित किया जाता है! अनुमोदन के लिए जाँच प्रक्रिया तो सिर्फ एक कागजी खानापूरी भर होती है!
वास्तव में इस देश की शिक्षा व्यवस्था को गर्त में ले जाने के लिए , सरकार द्वारा गठित समितियों की भूमिका काबिलेगौर है! देश में शिक्षा के नाम पर जिस तरह का बाजार खड़ा किया गया है, इसके पीछे इनकी शह को नकारा नहीं जा सकता है! अगर हम ताज़ा घटनाक्रम को ही लें तो, “अगर “दिल्ली यूनिवर्सिटी” का पाठ्यक्रम गलत हैं, तो जब ऐसे पाठ्यक्रम आरम्भ किये गए थे, उस समय यु.जी.सी क्या कर रहा था? क्यों नहीं, ऐसे पाठ्यक्रम को आरम्भ में ही रोका गया? क्या विश्वविद्यालय प्रशासन से इस पाठ्यक्रम पर सफाई मांगी गई थी? अगर जवाब ‘ना’ हैं, ऐसे में यु.जी.सी स्वयं सवालों के घेरे में आ जाती हैं! देश में उच्च शिक्षा के प्रचार-प्रसार, एवं नियंत्रण के लिए गठित इन सरकारी समितियों की विश्वसनीयता इस हद तक गिर चुकी है की , कोई नियंत्रण विश्वविद्यालयों के ऊपर नहीं रह गया है! नेताओं के लिए पैसा उगाही का केंद्र बने, यु.जी.सी की अंदरुनी हकीकत किसी विश्वविद्यालय से छिपी नहीं है, ऐसे में ऐसी सर्वोच्च संस्था से उन्हें भी कोई डर नहीं होता ! आज देश के विभिन्न न्यायालयों में लंबित सैकड़ों मामले ‘विश्वविद्यालयों एवं यु.जी.सी’ के बीच के संबंधों की हकीकत बयां करने के लिए प्रयाप्त हैं!
बुरी खबर यह है की दिल्ली यूनिवर्सिटी एवं यु,जी.सी के बीच चल रही नूरा-कुश्ती में दखल देने से केंद्र सरकार ने भी मना कर दिया है! जिस सरकार ने युवाओं को सामने रखकर देश के विकास का प्रण लिया हो, उससे इतनी संवेदनहीनता की उमीद कतई नहीं थी! मुझे लगता है शिक्षा मंत्रालय को इस मामले की गंभीरता को समझना चाहिए और तत्काल हस्तछेप करना चाहिए, जिससे छात्रों का भविष्य अंधकार में न डूबे ! साथ ही शिक्षा मंत्रालय को देश में शिक्षा व्यवस्था के सञ्चालन एवं नियंत्रण के लिए बनी ऐसी समितियों की कार्यशैली को सुधारने के लिए बड़े कदम उठाने चाहिए! अच्छा होगा की इन सभी समितियों को सरकार तत्काल प्रभाव से भंग करे…और कड़े प्रावधानों के साथ नयी समितियां गठित हो,…जिससे देश भर में फैले शिक्षा के बाज़ारीकरण पर रोक लगे, और शिक्षा व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार नियंत्रित हो सके, ! साथ ही विश्वविद्यालयों की दशा और दिशा सुधरने के लिए सरकार को स्वयं मजबूत पहल करना होगा, तभी इस देश की युवाशक्ति बेहतर ज्ञान-विज्ञानं की सम्पन्नता के साथ…एक मजबूत, सशक्त एवं विकसित भारत की स्थापना में अपना अग्रणी योगदान दे सकती हैं!
—– K.KUMAR “ABHISHEK (24/06/2014)
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