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आज जब हम एक आधुनिक समाज की बात करते हैं, हमारे बीच के कई लोग चकाचौंध की दुनिया के पिछे छिपे काले सच को नहीं देखा पाते | आधुनिकता की आड़ में आज जिस तरह हमारे समाज में लगातार रिश्तों की मर्यादा टूट रही हैं, निश्चय ही हमें भविष्य के भारत की तस्वीर को रेखांकित करने से पूर्व, उन सभी पहलुओं पर ध्यान देना होगा | अगर हम ‘नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो” की वार्षिक रिपोर्ट 2014 को ही एक नजर देख लें, इन्शानियत और मानवता के लिए सर्वाधिक शर्मनाक स्थिति का अहसास हो जाता हैं| रिपोर्ट पर गौर करें, जैसा की हम सभी जानते हैं पिछले कुछ वर्षों में हमारा समाज, जो कभी मर्यादित मानवता का मापदंड हुआ करता था, लगातार महिलाओं के लिए असुरक्षित होता जा रहा हैं| महिलाओं/लड़कियों के साथ होने वाले..शारीरिक दुर्व्यवहार/दुराचार की घटनाएँ जिस तेजी से बढ़ रही हैं, बेहद निंदनीय और शर्मनाक हैं….लेकिन बात यही पूरी नहीं होती | सर्वाधिक शर्मनाक यह हैं की, लगभग 94% मामलों में अपराधी, पीड़ित के नजदीकी लोग होते है| जिसमे पडोसी, रिश्तेदार, दोस्त-मित्र, और परिवार के सदस्य भी शामिल हैं | दर्द होता है कि, पिछले एक वर्षों में 539 ऐसे मामले भी आये जिसमे, परिवार के सदस्य ही शामिल थे |
मुझे नहीं लगता की इस बेहद कड़वे सत्य को अत्यधिक विस्तार देने की जरुरत हैं | लेकिन आज हम सभी के ऊपर प्रश्नचिन्ह लगा हुआ है, क्या यही हमारी आधुनिकता हैं? बलात्कार पर लम्बा-चौड़ा भाषण देने से पहले हमें चिंतन करना होगा | बड़ा अच्छा लगता है सुनकर, जब लोग समाज को दोष देते है, दुसरो को जिम्मेदार ठहराया जाता हैं…लेकिन जब रक्षक ही भक्षक हो, क्या मतलब बनता है ऐसे भाषणो का ? जब अपने परिवार वाले ही अस्मत लूटने पर आमदा हो…क्या मतलब है समाज को दोष देने का? समाज हमसे बनता हैं, हमसे बिगड़ता हैं|
आज जिस तरह हमारे समाज में रिश्ते की मर्यादा तार-तार हो रही है, वह समय दूर नहीं…जब हमारी तुलना पशुओं से होगी | अपनी बहन/बेटियों पर बुरी नजर रखने वाला इंसान …का पशु कहलाना…वास्तव में पशुओं की मर्यादा को भाग करना ही होगा | जरुरत है की,,..हम रंगीन चश्मे से दुनिया को देखना बंद करें |आधुनिकता की बात अवश्य होनी चाहिए, लेकिन उसकी इतनी बड़ी कीमत भी नहीं होनी चाहिए की…हमारे समाज में रिश्तें के पिछे छिपी हमारी स्वस्थ भावनाओं की बलि देनी पड़े | बदलते समाज के इस गंभीर पहलु की तरफ हमें देखना ही होगा | आँख मूंद लेने से सत्य नहीं बदलता | हालत की गंभीरता को लेकर इस समाज के हर व्यक्ति को चिंतन करना होगा, जिसे अपने जीवन में स्त्री-पुरुष के रिश्तों की कद्र हैं | अगर हमने ऐसा नहीं किया, ये दुनिया गोल हैं | …हमें इस भ्रम से बाहर निकलने की आवश्यकता है कि, हम आधुनक परिवेश में जा रहे हैं….वास्तव में हम उस दौर में प्रवेश कर रहे हैं, जब हमारे पूर्वज आदिमानव हुआ करते थे |
-K.KUMAR ‘ABHISHEK’
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