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आधुनिकता का पर्याय बनता ‘नशाखोरी’

YOUNG INDIAN WARRIORS
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आज हमारे आधुनिक भारतीय समाज की सबसे बड़ी समस्या है, नशाखोरी | ये सही है की प्राचीन भारतीय समाज में भी राजा-महाराजा, और बड़े रसूख वाले लोग विभिन्न प्रकार का नशा करते थे,| सामान्य वर्ग के पुरुष विशेष अवसरों पर मदिरा सेवन करते थे | लेकिन आज के भारतीय समाज में नशाखोरी किसी स्तर के साथ परिभाषित नहीं की जा सकती है, सभी स्तर/वर्ग के लोग आनंद प्राप्ति की कोशिस में उस अमृत का सेवन पूरी तत्परता से कर रहे हैं |
वास्तव में हम अपने समाज में फैली नशाखोरी का सरलता से अध्ययन हेतु वर्गीकरण करें, तो हमारे समाज में दो प्रकार के नशा सेवन करता होते है | १. कुछ नशाकर्ता ऐसे होते है, जो ऐसे पदार्थों के सेवन से अपनी सामाजिक, पारिवारिक, व्यावसायिक, शारीरिक समस्याओं से कुछ देर के लिए बेखबर होना चाहते हैं| वो चाहते है की उनका मस्तिष्क चेतनाशून्य हो जाये और वे सभी कष्टों को कुछ देर के लिए भूल जाएँ …इस वर्ग में बड़े उद्योगपति, व्यवसायी, अधिकारी, गाड़ियों के चालक, रिक्शावाले, ठेलेवाले, मजदुर आदि आ सकते है | दूसरा वर्ग उन नशाकर्ताओं का है, जिनको कोई कष्ट नहीं होता, कोई पीड़ा नहीं होती…वे मस्ती के लिए नशा करते हैं, अपनी शानो-शौकत दिखाने के लिए नशा करते हैं | इस वर्ग में बड़े उद्योगपतियों, व्यवसायियों के परिवार वाले, आधुनिक युवा, महाविद्यालयों, तकनिकी और प्रबंधन संस्थानों में पढ़ने वाले छात्र विशेष है|
चूँकि हमारी चर्चा भविष्य पर केंद्रित है, इसलिए अगर हम युवाओं की बात करें, तो स्थिति बेहद चिंताजनक है | हम समाज में बढ़ती नशाखोरी की बात करते हैं, लेकिन यह एक बेहद कड़वा सत्य है कि, हमारे देश के बड़े शिक्षण संस्थान नशाखोरी का अड्डा बने हुए हैं | मेरे हमउम्र मित्र अपने माता-पिता कि गाढ़ी कमाई का जमकर उपयोग …नशीले पदार्थों के सेवन में कर रहे हैं | वास्तव में इस स्थिति के लिए वह सोच जिम्मेदार है, जिसके तहत हमारे समाज में , विशेषकर हम युवाओं में यह बात घर कर गई है कि ‘ नशाखोरी ही आधुनिकता कि वास्तविक पहचान है | आज हम युवाओं में एक विचार तेजी से विकसित हो रहा है कि, “अगर हमें बड़ा आदमी बनना है, हमें बड़ो कि तरह रहना होगा | उनकी जीवनशैली को अपनाना होगा ” | फलस्वरूप हम बड़े (सफल) लोगों की तरह नशा करने लगते हैं, बड़े ब्रांड की व्हिस्की के बोतल में हम आधुनिकता ढूढ़ने लगते है,…और हमें लगता है की ‘बड़ा’ बनने का आधा काम पूरा हो गया | आज इन शिक्षण संस्थानों में ‘ नशा न करने वाले छात्रों’ को गंवार समझा जाता है, उन्हें हिकारत भरी नजरों से देखा जाता है | ऐसा लगता है की…नशा न करने वाले छात्र ..विकास और आधुनिकता की दौड़ में पिछड़ गए हैं |
नशे की बोतलों में आधुनिकता और अमीरी ढूढ़ने की यह कोशिश, इस देश के युवाओं को गलत दिशा में ले जा रही है |

युवाओं में नशाखोरी को बढ़ावा देने के लिए हमारी फिल्मे और टेलीविजन कार्यक्रम भी काम जिम्मेदार नहीं है | इस देशी के करोड़ों युवा लड़के लड़कियां भारतीय सिनेमा के अभिनेता/अभिनेत्रियों को अपना आदर्श मानते है | इनकी दीवानगी का ये आलम होता है की ये पसंदीदा कलाकारों की तरह बालों, और कपड़ों का अंदाज रख लेते है| यहाँ तक बोल-चाल में भी उनकी नक़ल करते है …ऐसे लोग जब अपने पसंदीदा कलाकार को फिल्मों में नशा करते देखते हैं | दारू की बोतलों के साथ झूमते देखते हैं, तो उनका मन भी उस परमानंद की प्राप्ति के लिए मचल उठता है | इसकी हम बानगी, महाविद्यालयों के कैम्पस, गलियों, मुहल्लों, चौक, चौराहों पर भी दिख सकते हैं, जहाँ रोमियो वेषधारी मेरे हमउम्र मित्र किसी फ़िल्मी हीरो की तरह सिगरेट का धुंआ …लहराते दिख जायेंगे |

अगर हमें इस देश को वास्तव में एक विकसित राष्ट्र बनाना है, युवाशक्ति को नष्ट होने से बचाना होगा | अगर हम वास्तव में एक स्वस्थ समाज की परिकल्पना तैयार करना चाहते हैं, युवाओं में बढ़ती नशाखोरी पर चिंतन करना होगा | नशाखोरी सिर्फ फिजूलखर्ची का नाम नहीं है| आज समाज में बढ़ते अपराधों, और उन अपराधों में युवाओं की सक्रीय भूमिका…बढ़ती नशाखोरी और उससे पैदा हुई हीरोगिरी पर चिंतन को विवस करती है | आप सभी अपनी राय दें, क्या नशाखोरी ‘आधुनिकता’ का
उदाहरण हो सकता है | क्या ऐसी आधुनिकता के साथ हम बेहतर समाज की कल्पना कर सकते है?

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