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भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में लाखों क्रन्तिकारी देशभक्तों ने अपनी जान की बाजी लगा दी | अंग्रेज सरकार ने समय-समय पर क्रांति की आग को दबाने के प्रयास में दमनकारी और हिंसात्मक प्रयासों का सहारा लिया, लेकिन वे क्रांति की दहकती लौ को बुझा नहीं सके | ऐसी ही एक न बुझने वाली ‘लौ’ का नाम था, ”खुदीराम बोस” | खुदीराम बोस वास्तव में एक लौ थे..’क्रांति की लौ’ ….क्योकि आज भी इतिहास के उन पन्नों में धमक का अहसास होता है, एक चिंगारी उठती है क्रांति की जिन पन्नो पर खुदीराम बोस अंकित मिलता है| खुदीराम बोस एक ऐसी लौ थे, जो लाखों युवाओं के सीने में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ बगावत की ज्वाला बन गई|
बंगाल के मिदनापुर के एक छोटे से गांव में जन्मे खुदीराम बोस, बचपन में ही अंग्रेज सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ उग्र होने लगे थे | देश को आज़ाद कराने की ऐसी लगन लगी की नौवीं कक्षा के बाद ही पढाई छोड़ दी और स्वदेशी आंदोलन में कूद पड़े | शायद यही समय था, जब १८५७ की क्रांति के बाद एक और क्रांति की नींव पड़ने लगी थी| १९०५ में बंगाल का विभाजन हुआ..पुरे देश में इसके खिलाफ आंदोलन, प्रदर्शन किये गए | ..खुदीराम बोस तब मात्र १६ वर्ष के थे..लेकिन इतनी छोटी उम्र में भी वे बंग-भंग आंदोलन के सक्रिय कार्यकर्त्ता थे| सच तो यह है कि, १६ वर्ष का क्रन्तिकारी बालक खुदीराम बोस लोगों के लिए मार्गदर्शक सिद्ध हो रहे थे | उनकी प्रेरणा से ही हज़ारों युवा आंदोलनरत हो गए | यहाँ तक की बड़ी उम्र वालों ने भी ने सोचा ..अगर एक छोटा बच्चा देश के लिए लड़ रहा है, हम क्यों नहीं?
खुदीराम बोस कई क्रन्तिकारी संगठनो से भी जुड़े, इस दौरान ही उनकी मुलाकात क्रांतिकारी लेखक सत्येन्द्रनाथ से हुई | दोनों ने मिलकर कई क्रांतिकारी पत्रिकाओं का संपादन/वितरण आरम्भ किया ..इसके लिए उनके ऊपर देशद्रोह के आरोप भी लगे, लेकिन सबूत के अभाव में बच निकले | बंगाल विभाजन के विरुद्ध आंदोलन में कलकत्ता के “जिला मजिस्ट्रेट किंग्जफोर्ड ” की अहिंसात्मक और बर्बरतापूर्ण करवाई से खुदीराम बोस और उनके साथियों में भारी रोष था | अंग्रेजी सरकार ने बाद में किंग्जफोर्ड को मुजफ्फरपुर भेज दिया …तब तक खुदीराम बोस और उनके साथी किंग्जफोर्ड को मारने की योजना बना चुके थे,
मुजफ्फरपुर जइबो, किंग्जफोर्ड मरिबो…..
यह गीत खुदीराम बोस हर गली-मोहल्ले में गाते फिरते थे, वास्तव में १६-१७ वर्ष का यह जूनून लोगों को ‘पागलपन’ नजर आता था | तय योजना के तहत खुदीराम बोस और उनके प्रमुख साथी. प्रफुल्ल चाकी ..मुजफ्फरपुर गए और घटना को अंजाम भी दिया..लेकिन वे निशाना चूक गए | क्रांतिकारियों ने किंग्स्फोर्ड के सामान दिखने वाली गाड़ी पर बम फेंक दिया था….किंग्स्फोर्ड बच निकला| इस घटना के बाद अंग्रेज सरकार की नींद हराम हो गई |…खुदीराम और उनके साथियों के पीछे अंग्रेज सिपाही किसी यमदूत की तरह लग गए..| आख़िरकार वैनी रेलवे स्टेशन पर खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी घेर लिए गए….प्रफुल्ल चाकी ने खुद को गोली मार ली ..खुदीराम बोस पकडे गए | उनके ऊपर अनेकों मुक़दमे चले .. अंग्रेजों मजिस्ट्रेट ने उन्हें फांसी की सजा सुनाई…| कहते हैं की, उस मजिस्ट्रेट के भी १८ वर्ष के बालक की निर्भीकता देखकर हाथ कांपने लगे थे | किंग्जफोर्ड ने अपनी मौत के डर से नौकरी छोड़ दी, और इंग्लॅण्ड वापस चला गया…उसे शक था का खुदीराम के साथी उसे नहीं छोड़ेंगे |
११ अगस्त १९०८ को मुजफ्फरपुर जेल में खुदीराम बोस को फांसी दी गई | उस समय उनकी उम्र मात्र १९ वर्ष थी.| एक छोटे से बालक को गीता हाथ में लिए निर्भीकता के साथ मौत को गले लगाते देखकर …पत्थरदिल अंग्रेजों का कलेजा भी दहल उठा था|
खुदीराम बोस की फांसी से अंग्रेजों को लगा की क्रांति की लौ बुझ चुकी है…लेकिन क्रांति की लौ ने बुझने से पहले ज्वालामुखी पैदा कर दिया था…बाद के क्रांतिकारियों, चंद्रशेखर आज़ाद, भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, असफाक उल्ला खान…सभी उसी लौ की ‘ज्वाला’ थे …जिसे अंग्रेज समझ नहीं पाये थे|
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