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हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी ‘भारत रत्न’ को लेकर जबरदस्त हंगामा हो रही है | पिछले १ सप्ताह से न्यूज़ चैनलों पर लगातार खबर दिखाई जा रही है की इस बार पांच महानुभावों को भारत रत्न दिया जा सकता है | खबरिया चैनलों की मानें तो महान हांकी खिलाडी ‘मेजर ध्यानचंद’, सुभास चन्द्र बोस, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, मदन मोहन मालवीय, और धार्मिक पुस्तकों के प्रमुख प्रकाशक ‘गीता प्रेस’ के सस्थापक हनुमान पोद्दार का नाम लगभग तय है..| देखना दिलचस्प होगा की मिडिया की अटकलबाजियां और अटकलबाजियों के आधार पर पुरे देश में चल रही बहसबाजी का विराम कैसा होता है?
वास्तव में हम देखें तो ‘भारत रत्न’ का विवादों से पुराना नाता है| कोई स्पष्ट मापदंड न होने की वजह से कई ऐसे नामो को ‘भारत रत्न’ दिया गया है, जो बहस का कारण बने हैं | ये सवाल हमेशा खड़ा होता रहा है की ..किसी क्षेत्र में सर्वक्षेष्ठ होने का पैमाना क्या है? आज सुभास चन्द्र बोस को ‘भारत रत्न’ दिए जाने की सम्भावना हो रही है…लेकिन उनसे पहले ‘भारत रत्न’ प्राप्त कर चुके नाम …क्या सुभास चन्द्र बोस से ज्यादा योग्य थे? मेजर ध्यानचंद को ‘भारत रत्न’ देने की मांग लगातार उठती रही…पिछली सरकार जो ‘भारत रत्न’ की आवश्यकता ही नहीं समझ पा रही थी, ..पिछले वर्ष ध्यान टुटा और क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर और वैज्ञानिक सी.ऍन राव को यह सम्मान अलंकृत किया गया था| बाद में ऐसी खबरे भी आयी की,.. भारत रत्न के लिए ‘ध्यानचंद’ का नाम आगे बढ़ाया गया था…लेकिन चुनावी फायदे के लिए अंतिम वक्त में सचिन तेंदुलकर को यह सम्मान दिया गया | सचिन तेंदुलकर महान क्रिकेट खिलाडी है, उनकी योग्यता पर किसी को संदेह नहीं है..लेकिन प्रश्न यही है की..क्या सचिन.. ध्यानचंद से पहले ‘भारत रत्न’ पाने के हक़दार थे? सिर्फ ध्यानचंद ही क्यों……मेरी कॉम और विश्वनाथन आनंद भी अपने खेल में कई बार वर्ल्ड चैम्पियन रह चुके है | जब इंदिरा गांधी को भारत रत्न दिया गया….क्या इंदिरा जी से योग्य उस समय कोई नहीं था ? आज जब हनुमान पोद्दार को भारत रत्न देने की मांग उठा रही है…क्या मुंशी प्रेमचंद, और रविंद्रनाथ टैगोर की साहित्यिक उपलब्धियां कम पड़ रही है?
वास्तव में भारत रत्न को लेकर गन्दी राजनीति ने इसकी गरिमा को मिटटी में मिला दिया है| यह दुर्भाग्य है की आज ‘भारत रत्न’ के लिए नामों के चयन का आधार सरकार की पसंदगी है. भारत रत्न वही हो सकता है जो सरकार का समर्थक हो..विरोधियो की योग्यता कोई मायने नहीं रखती है | जिसकी सरकार होगी..उसके समर्थकों के लिए सम्भावना बढ़ जाती है| आज जिस तरह राजनीतिक पैमानों और मापदंडों को आधार बना ‘भारत रत्न’ का अवार्ड दिया जा रहा है…आने वाले समय में यह महज एक पुरुस्कार बन के रह जायेगा, और स्वाभिमानी लोग इसे ठुकराते नजर आएंगे | इसकी एक झलक भी आज दिखने लगी है…जिस सुभासचन्द्र बोस को आज भारत रत्न देने की सम्भावना व्यक्त की जारी है…उनके परिवार ने बेहद सहज लहजे में यह कहा है की ‘ “सुबास चन्द्र बोस’ भारत रत्न से ऊपर है” …वास्तव में उनका जवाब हमारे सामने एक सवाल है की…जिस सुबास चन्द्र बोस को आज़ादी के ६८ वर्षों बाद तक ‘भारत रत्न’ के लायक नहीं समझा गया ….आज उनके परिवार को यह लगता है ‘भारत रत्न’ का अलंकरण ‘सुबास चन्द्र बोस’ के लायक नहीं है | क्या यह महज एक प्रतिक्रिया है?
हम अपने देश के नेताओं से निःस्वार्थ भाव से देश चलाने की अपेक्षा रखते है….सवाल खड़े हैं…जो निःस्वार्थ भाव से ‘अवार्ड’ को नहीं चला सके..देश क्या खाक चलाएंगे | आज सुबास चन्द्र बोस के परिवार ने ठुकराने का माद्दा दिखाया है…कल इस देश का हर वह व्यक्ति इस अवार्ड को ठोकर मरेगा जो असली हक़दार होगा |…फिर सभी राजनीतिक दल सरकार के मंत्रालयों की तरह अपने नेताओं, चमच्चों को ‘भारत रत्न देंगे | मैं इस स्थिति को लेकर किसी उमीद में नहीं, मेरा कोई निष्कर्ष नहीं है…क्योकि मुझे उमीद ही नहीं पूर्ण विस्वास है की जब तक ‘भारत रत्न’ का अधिकार सरकार के हाथ में है…हालत में सुधार की सम्भावना भी नहीं है..| हमारी जिमेदारी बस इतनी भर है की क्रिकेट के छक्कों की तरह एक छक्का मान के ताली मार लें या, कपिल शर्मा के ठुल्लु ही मान कर एक- दो ठोक दें.|
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