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आज विश्व में अयोध्या कि पहचान ‘हिन्दू-मुस्लिम दंगों’ के लिए होती है I लाखों बेकसूर भारतीयों के कत्लेआम के लिए होती है I क्या यही वास्तविक पहचान होनी चाहिए अयोध्या की? वास्तव में अयोध्यावासी इस पहचान से ऊब चुके हैं I वे आगे निकलना चाहते हैं I उस दर्द को भुलाना चाहते है…जो वर्षों पहले अपने ही दोस्तों,मित्रों, पड़ोसियों ने दिया था I दुर्भाग्य है की, हम उनकी तकलीफ को नहीं समझ रहे हैं I जहाँ कुछ लोग उस चिंगारी को लगातार हवा देकर देश को सांप्रदायिक दंगों में झोंकना चाहते हैं I वहीँ विभिन्न दलों के कई नेता ‘अयोध्या’ को मुद्दा बना अपनी राजनीतिक परिपाटी को सुरक्षित करने का सफल प्रयास भी कर रहे हैं I ऐसे समय में जब पुरे देश में ‘विकास’ एक बड़ा मुद्दा बन रहा हैं, क्या अयोध्या के लिए ‘राममंदिर-बाबरी मस्जिद’ ही मुद्दा बने रहेंगे? क्या अयोध्यावासियों का सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक विकास मुद्दा नहीं होना चाहिए? हमें चिंतन करना होगा I तकलीफ होती है, जिस भूमि को हमने पूज्य माना, उसे ही हम नरक का रूप बना चुके हैं I जिस भूमि से शांति का सन्देश जाना चाहिए, वही भूमि आज धार्मिक उन्मांद का सन्देश बन रहा है, मानवता और इंसानियत पर खतरे के रूप में देखा जा रहा है I
आज अयोध्या दंगों को हुए लगभग 22 वर्ष हो चुके है अर्थात, एक बचपन जवां हो गया अयोध्या में …लेकिन आज भी अयोध्या ‘राम मंदिर-बाबरी मस्जिद’ पर रुका हुआ है I लोग भूल चुके हैं उस मंजर को, लेकिन चिंगारी अभी भी धधक रही है और जब तक इस मसले का कोई समाधान नहीं निकलता, नियमित शांति की उम्मीद नहीं की जा सकती है I मामला न्यायालय में है, लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण है की देश की अखंडता पर खतरा बने इस मामले में न्यायालय भी किसी ठोस निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सका है I समझना मुश्किल नहीं कि, न्यायालय के लिए किसी भी अंजाम तक पहुंचना समाज में अशांति और अस्थिरता का कारण हो सकता है, राष्ट्र की अखंडता खतरे में आ सकती है I ऐसे में आवश्यकता है कि अयोध्या को मुख्य धारा में वापस लाने के लिए कुछ विशेष प्रयास हो! हमें ऐसे मौके बनाने होंगे, जिससे अयोध्या का आम जन-मानस ‘जाति-धर्म’ कि वैचारिक सीमाओं से उप्पर उठकर, मंदिर-मस्जिद कि लड़ाई से बाहर निकलकर ..एक स्वस्थ,शिक्षित, समृद्ध अयोध्या के लिए एकजुट होकर आगे बढे I समाज में अविश्वास की स्थिति समाप्त हो और लोगों में एक-दूसरे के प्रति विश्वास पैदा हो I मरने-मारने की सोच से आगे निकालकर, पुनः एक-दूसरे के लिए जीने-मरने कि सोच पैदा हो I इसके लिए कहीं न कहीं हमारी सरकारों को विशेष प्रयास करना ही होगा…और शायद तभी हम न्यायपालिका को एक शांतिपूर्ण समाधान का अवसर उपलब्ध करा पाएंगे I
‘शिक्षा’ समाज में शांति, समृद्धि और अखंडता का सर्वक्षेष्ठ माध्यम है I मुझे व्यक्तिगत तौर पर लगता है कि..इस माध्यम का बेहतर उपयोग अयोध्या में शांति बहाली के प्रयासों के तहत होना चाहिए I जो अयोध्या आज देश में सांप्रदायिक ‘दंगों का मॉडल’ के रूप में देखा जा रहा है., उसे ‘शिक्षा का मॉडल’ बनाना होगा I हमारी सरकार को अयोध्या में एक अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय कि स्थापना के बारे में सोचना होगा, जिसका नाम ”अंतर्राष्ट्रीय एकता विश्वविद्यालय” होना चाहिए I जहाँ सभी धर्मों के लोग आपसी एकता के साथ शिक्षा ग्रहण कर एक स्वस्थ,शिक्षित, सुव्यवस्थित समाज की परिकल्पना को वस्तिकता में बदल सकें I साथ ही सरकार को नीतिगत रूप से ऐसे प्रयास करने होंगे ..जिससे सभी जाति-धर्म के लोग साथ जुड़ सकें, एक साथ मिल-बैठकर जीवन का सफर तय कर सकें I मुझे पूरी उमीद है कि ऐसे किसी भी प्रयास से अयोध्या में शांति बहाली कि मजबूत संभावनाएं बनेंगी I ”राम मंदिर और बाबरी मस्जिद” में उलझा अयोध्या ‘ ज्ञान मंदिर’ कि स्थापना से एक नयी ऊर्जा , नयी पहचान के साथ विकास के पथ पर अग्रसर होगा I ‘मंदिर-मस्जिद’ कि आड़ में इतिहास में उलझा अयोध्या भविष्य कि संभावनाओं के लिए प्रयास करेगा I सबसे अहम कि, आज देश के विभिन्न क्षेत्रों में सांप्रदायिक दंगों कि खबरे आती है..जिसमे ‘अयोध्या मॉडल’ कि झलक दिखती है, ‘ज्ञान मंदिर’ की स्थापना से अयोध्या पुरे देश में एकता की एक नयी मिशाल बन के खड़ा होगा I अयोध्या की एक नयी पहचान बनेगी…और यह बदली हुई पहचान ही अयोध्या की नयी पीढ़ी को इतिहास को पीछे छोड़कर आगे बढ़ने को प्रेरित करेगी I
यह अवसर है कि, हम सब मिलकर एक जिम्मेदार भारतीय के रूप में अपने कर्तव्यों के लिए थोड़ी तत्परता दिखाएँ I वर्ष २०१४ देश की राजनीति में एक बड़ा परिवर्तन लेकर आया है I देश में एक नयी सरकार बनी, जिसके मुखिया आदरणीय श्री नरेंद्र मोदी जी ..एक स्वस्थ, समृद्ध और अखंड भारत की उमीद जगा रहे हैं I करोड़ों भारतीयों की तरह मैं भी काफी आशावान हूँ, और मुझे लगता है की आदरणीय प्रधानमंत्री जी इस दिशा में हमारी उमीदों को परिणाम का रूप देने में एक मजबूत पहल अवश्य करेंगे ई
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