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पिछले दिनों सयुक्त राष्ट्रसंघ की एक संस्था( यु. एन.एफ.पी. ऐ ) ने वर्ष २०१४ की वर्तमान स्थिति पर एक रिपोर्ट जारी किया, जिसमे भारत को सर्वाधिक युवाओं वाला देश घोषित किया गया! रिपोर्ट के अनुसार आज भारत की कुल जनसंख्या का २८% हिस्सा (लगभग ३० करोड़ ५० लाख ) १०-२४ आयु वर्ग का है ! इस रिपोर्ट के आने के साथ ही देशवासियों में एक मजबूत, सशक्त और विकसित भारत को लेकर नयी उमीदे जगी है! अपितु इस रिपोर्ट में भी भारत की संभावनाओं को लेकर विश्वास व्यक्त किया गया है! वास्तव में जिस तरह से आज पूरा देश अपनी ‘युवा शक्ति’ को लेकर आशान्वित है, जिस तरह से लोग युवा कंधों पर भारत को एक वैश्विक महाशक्ति बनने की तरफ अग्रसर होते देखने की कामनाएं कर रहे है, ….मुझे लगता है की हमें ‘सपनो की बुनियाद’ को समझने का प्रयास करना होगा! हमें आज के युवा भारत कि वास्तविकता को समझने का प्रयास करना होगा! स्वयं एक युवा होने के बावजूद मैं आशंकित हूँ कि , क्या वास्तव में हम देश को अपने कंधों पर वह गति देने को तैयार है? क्या हम उस दिशा में अग्रसर है कि करोडो देशवासियों कि उमीदों का भारत बना सकें ? अपनी भावनाओ को दरकिनार कर, इन प्रश्नो का जवाब ढूढ़ना ही होगा !
किसी भी राष्ट्र कि ‘युवाशक्ति’ उस देश कि जमापूंजी होती हैं, जो भविष्य की संभावनाओं का प्रतिक होती हैं! मुझे लगता है की अपने देश की जमापूंजी के रूप में हमारी भूमिका बेहद संदेहास्पद है ! वास्तव में हम अपनी राह से भटक गए है, और उस राह पर है जहाँ से ‘सपनों के भारत’ की उमीदें लगाना भी बेमानी है,! आज जिस युवा भारत पर पूरा देश गौरवान्वित नजरों से देख रहा है…उस भारत की कमियों, खामियों, समस्याओं, और वर्तमान परिस्थिति को गंभीरता से समझना होगा! इस प्रयास में आइये देखते है. ‘युवा भारत’ कि वर्तमान दशा और दिशा, मेरी ‘युवा नजर’से-
## नशाखोरी :- नशाखोरी हम युवाओं की सबसे गंभीर समस्या है ! आज जिस तरह से हम युवाओं में अपने आपको आधुनिक और फ़िल्मी दिखने के प्रयास में मादक पदार्थों के सेवन का प्रचलन बढ़ रहा है.वास्तव में एक व्यक्ति के रूप में हमारी संभावनाओं पर प्रश्नचिन्ह लग चूका है! दुर्भाग्य तो यह कि, आज हम युवाओं में यह ग़लतफ़हमी पैदा हो चुकी है की बड़ा आदमी बनने के लिए ‘नशायुक्त जीवनशैली अपनाना आवश्यक है और इस प्रयास में हम छात्र जीवन में ही अपने माता-पिता की गाढ़ी कमाई को नशे के ठेकेदारों के यहाँ पहुँचाने का कार्य कर रहे हैं! आज हम शराब की बोतलों में आधुनिकता ढूढ़ने का प्रयास कर रहे है ! क्या यह स्थिति हमारी दिशाहीनता का परिचायक नहीं है?..हमें सोचना होगा ! जो ‘युवा’ स्वयं नशे में चूर हो, जो मानसिक और वैचारिक रूप से अपंगता का शिकार हो..कभी भी राष्ट्र और समाज को सही दिशा नहीं दिखा सकता है…अपितु उसे खुद दिशा दिखाने कि आवश्यकता है! ऐसे पथभ्रष्ट ‘युवाशक्ति’ किसी राष्ट्र कि जमापूंजी नहीं अपितु….किसी ‘जमा कचरे कि ढेर’ कि तरह हैं!
## प्रमाणपत्रों में सिमटी शिक्षा :- आज न जाने क्यों ऐसा लगता है कि..हम युवाओं में शिक्षा के मायने बदल गए है! आज शिक्षा का उदेश्य ‘ज्ञानोपार्जन’ नहीं सिर्फ ‘धनोपार्जन’ हो गया है! आज हर कोई सिर्फ इसलिए अध्ययन में लगा है कि उसे एक प्रमाणपत्र मिल सके..जिसके आधार पर वह सरकारी, अर्धसरकारी, या गैरसरकारी नौकरियों में प्रवेश के लिए अहर्ता हासिल कर सके! इस सोच का असर ‘अध्ययन शैली’ पर पड़ रहा है! हम सिर्फ वही पढ़ना चाहते है..जो परीक्षा में संभावित हो…उससे अधिक हमें पढ़ना फिजूल लगता है…और इसी प्रयास में हम उन निजी शिक्षण संस्थानों के चक्कर लगा रहे है…जो पाठ्यक्रम को दरकिनार कर सिर्फ परीक्षाफल के लिए अध्ययन करवाते है ! प्रश्न लाजमी है कि ऐसी बड़ी-बड़ी डिग्रियों वाले अशिक्षित ज्ञानी देश और समाज को क्या दिशा देंगे? ऐसे लोग हमारी ‘व्यवस्था’ को क्या गति देंगे, जो खुद शिक्षा कि दुर्गति का परिणाम हो? हमें इस विषय पर गंभीरता से सोचना होगा.!..निश्चय ही इस स्थिति के लिए कई तत्व जिम्मेदार है..लेकिन समस्याओं में हमें खुद निपटना होगा ! ‘शिक्षा’ का परिचय व्यक्ति कि व्यव्हार, कार्यशैली, और विचारधारा से होता है, प्रमाणपत्रों से नहीं!
##नौकरियों कि होड़ :- ‘युवा भारत’ का एक दुर्भाग्यपूर्ण पहलु यह भी है की हम युवाओं के बीच नौकरियों की अंधी दौड़ सी लगी है ! किसी में भी ‘मालिक’ बनने की चाहत ही नहीं दिख रही, सभी गुलामी में ही जीवन की संभावनाएं ढूंढ रहे हैं ! आज बेरोजगारी हमारे देश की सबसे बड़ी समस्या है,..लेकिन इस समस्या का सबसे दुर्भाग्यपूर्ण पहलु है ‘शिक्षित बेरोजगार’ ! बुरा लगता है की लाखों रूपये खर्च कर इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट जैसी बड़ी डिग्रियों के मालिक भी मज़बूरी का रोना रोते है, और बेरोजगारों की कतार में खड़े पाये जाते है! क्या देश इनसे यही उमीद करता है? शायद, नहीं! देश उमीद करता है की ऐसे होनहार युवा कुछ ऐसा कार्य करेंगे, जिससे देश के बाकि बेरोजगारों के लिए संभावनाएं बन सकें ! बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे पिछड़े राज्यों की स्थिति इस हद तक चिंताजनक है की यहाँ परिवार वालों को ‘सरकारी नौकरी’ के अलावे कुछ नहीं दिखता है निश्चय ही इसका कारण ‘ऊपरी आमदनी का भ्रष्टाचार’ है! ऐसे बच्चे जिन के मस्तिष्क में सिर्फ एक ही सॉफ्टवेयर होता है ‘सरकारी नौकरी’ …जब जीवन में सरकारी नौकरी नहीं मिल पाती, उन्हें लगता है जीवन समाप्त हो गया! ऐसे युवा कभी पंखों से लटके मिलते है, या रेलवे पटरियों पर ! हमें सोचना होगा, क्या हम स्वरोजगार को प्रथम विकल्प के तौर पर नहीं अपना सकते? हमें आज़ादी के मायने समझने होंगे! एक इंसान के रूप में आत्मनिर्भरता कि अहमियत को समझनी होगी, तभी हम भारत को एक राष्ट्र के रूप में आत्मनिर्भरता के प्रति चिंतनशील हो सकते है! ## भाग्यवादी नजरिया :- यह सर्वाधिक दुखद समस्या है, एक तरफ हम अपने आपको विज्ञानं का पैरोकार कहते हैं! मंगल गृह पर पहुँचने का दम्भ भरते है ! वहीँ दूसरी तरफ आज भी मेरे करोडो साथी भाग्य,गृह-नक्षत्र और न जाने ऐसी कितनी भ्रामक विचारों में भी कैद है! ‘धर्म’ की आड़ में पैदा हुआ भाग्यवादी नजरिया, हमेशा से एक व्यक्ति, समाज व् राष्ट्र के रूप में हमारे विकास का सबसे बड़ा बाधक रहा है! वास्तव में भाग्य ने सिर्फ लोगों को कर्महीन व् गैर-जिम्मेदार बनाने का कार्य किया है! आज मेरे मित्र परीक्षाओं में असफल होते है, और कहते पाये जाते है- “उनके भाग्य में ही नहीं लिखा था” ! इसमें कोई शक नहीं की वे अपनी नाकामी को छिपाने के लिए ‘भाग्य’ का रोना रो रहे है! ऐसा गैर-जिम्मेदराना नजरिया किसी भी काबिल इंसान को ना-काबिल बनाने के लिए प्रयाप्त है! इससे भी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है की ..कुछ ऐसे भी युवा है जो खुद की मेहनत से ज्यादा ‘भाग्य परिवर्तन’ को लेकर आशावान होते है! ऐसे पढ़े-लिखे लोग अनपढ़ बाबाओं की भक्ति में भी कोई कोताही नहीं करते! हाथों में अंगूठियां, गले में ताबीज ही इनके भविष्य का सहारा है! क्या ऐसे लोग जो खुद का सहारा नहीं बन पा रहे है, वे देश का सहारा बनेंगे? जिन्हे खुद की काबिलियत पर भरोसा नहीं, क्या देश इन पर भरोसा करेगा? ## फ़िल्मी दुष्प्रभाव :- एक समय था, जब लोग कहते थे, बच्चों के लिए पहली पाठशाला उसका घर है और माता-पिता पहले शिक्षक! आज उसी घर में एक ऐसा सदस्य प्रवेश कर चुका है, जिसका प्रभाव बच्चों पर सर्वाधिक पड़ रहा है-टेलीविजन ! आज जिस तरह से हमारी फिल्मों में अशिष्टता,अश्लीलता, असभ्यता, नशाखोरी, और अपराधिक दृश्यों का प्रदर्शन हो रहा है, जिस तरह से स्त्री शरीर को किसी मसाले की तरफ पेश किया जा रहा है..और ऐसी फिल्मे टेलीविजन के माध्यम से हमारे घरों में पहुँच रही है,..यह देश की युवा पीढ़ी को पथभ्रष्ट करने का सबसे बड़ा कारण है! फ़िल्मी अश्लीलता को देख-देख कर बड़े हुए बच्चों समय से पहले युवा हो रहे है! ऐसे बच्चे जब युवा अवस्था में आते है तो हम उमीद करते है वे महिलाओं की इज्जत करें.! इस विषय में एक और पहलु जिस पर गौर करने की आवश्यकता है की..आज हम सब युवा इस हद तक गलतफहमी में हैं की हम फ़िल्मी हीरो को असली हीरो मान बैठे है! हर कोई किसी न किसी फिल्म के हीरो की नक़ल करने में लगा है, क्या हम असल जिंदगी के हीरो की नक़ल नहीं कर सकते ? वास्तव में इस विषय पर हमें बेहद संजीदगी सोचने की जरुरत है.! अगर हम वास्तव में देश को एक नयी दिशा देना चाहते है,..अपनी खुद कि दिशा को भ्रामक और काल्पनिक दुनिया में गुम होने से रोकना होगा!
## नारे लगाने वाली भीड़:- जब भी मैं ‘युवा भारत’ को राजनीतिक दृष्टिकोण से देखता हूँ , लगता है कि हम युवा सिर्फ व् सिर्फ नारे लगाने कि भीड़ बन के रह गए हैं ! जब भी शहर में बड़े नेताजी आते है, झंडा युवाओं के हाथ में होता है! नेताजी चले जाते है..हमें कोई हाल-चाल पूछने वाला भी नहीं होता! आज जिस तरह देश कि राजनीति लगातार बद से बदतर होती चली जा रही है ,.. देश को ऐसे युवाओं कि जरुरत है जो ऐसे भ्रष्ट नेताओं को उखाड़ फेंके…न कि ऐसे देश के लुटेरों के लिए नारेबाजी करे! आज लगभग हर राजनीतिक दल के पास छात्र संगठन है, इन संगठनों के बावजूद क्या देश में शिक्षा व्यवस्था में कोइ बड़ा सुधर हुआ है? क्या छात्रों कि समस्याएं सुनी गयी है? अगर नहीं, फिर छात्र संगठनो का औचित्य क्या है? हम युवाओं को समझने कि आवश्यकता है कि देश के इन भ्रष्ट राजनेताओं को छात्रों के हित कि नहीं, अपितु अपनी राजनीतिक परिपाटी कि चिंता है! अपने दल के राजनीतिक भविष्य कि चिंता है…और इस प्रयास में भविष्य के मतदाताओं को अभी से अपने कब्जे में करने कि होड़ का नाम है ‘छात्र राजनीति’! हमें तय करना होगा कि…हम किसी के वैचारिक गुलाम नहीं बनेंगे…हम जहाँ भी रहेंगे, अपनी सोच के साथ लड़ेंगे,भिड़ंगे, और राष्ट्र व् समाज को परिवर्तन कि राह पर डालेंगे! हम सिर्फ ‘भारत माता’ के लिए नारे लगाएंगे ….न कि अपनी युवा ताकत को किसी कि जी-हजुरी में लगाएंगे!
## असभ्यता-अशिष्टता :- स्वयं एक युवा होने के बावजूद मुझे लगता है कि, आज हम युवाओं के व्यव्हार, विचार, समाज और राष्ट्र को लेकर हमारी सोच पर प्रश्नचिन्ह लगा है! आज जिस तेजी से समाज में बदलाव हो रहा है, मुझे लगता है कि रिश्तों कि मर्यादा को लेकर हमें बेहद संयमित होने कि आवश्यकता है! अपने माता-पिता, अपने अभिभावकों, दोस्तों-मित्रों में के साथ बेहतर संबंधों कि बुनियाद को समझना चाहिए! अपने घर-परिवार और समाज में महिलाओं के प्रति अपनी सोच को स्वस्थ और सार्थक बनाने का प्रयास होना चाहिए ! आज हमारे मित्र पश्चिमी सभ्यता से बेहद प्रभावित हो रहे है…हमें एक बात को भलीं-भांति समझना होगा कि ..भारतीय सभ्यता और संस्कृति में निश्चय ही कुछ खामियां है, लेकिन यह एक मात्र संस्कृति है जो मानवीय मूल्यों के साथ विकास कि अवधारणा का सन्देश देती है! हमें अपने देश, समाज, संस्कृति पर गर्व होना चाहिए!
ऐसी ढेरों कमियां है, लेकिन हम किसी से कम नहीं है…और अगर हैं तो अब नहीं रहेंगे…..ऐसी सोच के साथ हम युवाओं को आगे बढ़ना चाहिए! आज करोड़ों भारतीय हमें उमीद के साथ देख रहे हैं….हमें अपनी खामियों पर विचार करते हुए आगे बढ़ना होगा! इस अवधारणा को झुठलाते हुए आगे बढ़ना होगा कि हम सिर्फ मस्ती, और इश्क ही कर सकते है! इतिहास बीत चुका है, वर्तमान सिर्फ पल भर है…..भविष्य दहलीज पर है ! और विश्वास कीजिये…कल हमारा है! हम अभी से यह तय करें कि…..हम अपनी आने वाली ‘अगली युवा पीढ़ी’ को एक विकसित,शिक्षित, स्वस्थ, स्वच्छ, अखंड और आत्मनिर्भर भारत देंगे !
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